Friday, December 30, 2011

साहित्यकार संसद के स्पीकर डॉ. हरीश अरोड़ा

प्रिय मित्रो 

          सादर ब्लॉगस्ते!

                    ये लो जी संसद का शीतकालीन सत्र भी समाप्त हो गया और बीमारी के कारण महात्मा अन्ना का अनशन भी ख़त्म हुआ. ठंडी फूफी अपने शीत अस्त्रों से उत्तर भारत, ख़ास तौर पर दिल्ली वासिओं का  हुलिया टाईट किये हुए हैं. इन सब घटनाओं से बिना व्यथित हुए  डॉ. हरीश अरोड़ा फेसबुक पर साहित्यकार संसद को चलाने में व्यस्त और मस्त हो रखे हैं. मित्रो आप भली-भाँति समझ गए होंगे कि आज मैं आप सभी का परिचय कराने जा रहा हूँ एक और ब्लॉगर डॉ. हरीश अरोड़ा से. 
उनके परिचय में क्या कहूँ... उनकी रचनाधर्मिता उनके जीवन को खुद बयां करती है..
मैं किसी के सांस की अंतिम घडी हूँ
मैं किसी के गीत की अंतिम कड़ी हूँ.
जिंदगी घबरा के बूढी हो गयी है,
मैं सहारे के लिए अंतिम छड़ी हूँ.
यह फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं. वर्ष १९८७ से साहित्य लेखन के क्षेत्र में आये. विद्यालयी शिक्षा के दौरान इनकी  रूचि साहित्य में नहीं थी. लेकिन 12 कक्षा के दौरान कविता लेखन में रूचि जागृत हुयी.  कॉलेज की शिक्षा के दौरान कुछ युवा रचनाकारों के साथ मिलकर वर्ष १९८८ में 'युवा साहित्य चेतना मंडल' संस्था का निर्माण किया.  यह संस्था आज साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिए योगदान देने के साथ साथ प्रकाश के क्षेत्र में भी आ चुकी है. आगे पढ़ें... 

Sunday, December 11, 2011

चरित्रहीन (लघु कथा)

धीरज दूध की डेयरी पर खड़ा दोस्तों के साथ गप्प मार रहा था. किसी भी लड़की को बात ही बात में चरित्रहीन कर देना उसकी बुरी आदत थी. अभी किसी बात पर बहस हो ही रही थी कि सामने से एक लड़की आती हुई दिखी. धीरज अपनी आदतानुसार शुरू हो गया, " पता है कल्लू वो जो सामने से लड़की आ रही है न. उससे मेरी दोस्ती करीब एक साल तक रही. हम दोनों ने साथ-२ खूब मस्ती की." आगे पढ़ें...

Thursday, June 9, 2011

एक पत्र जाति प्रथा के नाम

आदरणीय जाति प्रथा

सादर बाँटस्ते

आज की परिस्थितियों को स्वीकार करते हुए आपको यह पत्र लिख रहा हूँ. ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में विराट द्वारा आपकी उत्पति की गयी थी. जिसमें कहा गया था की ब्राम्हण परम-पुरुष के मुख से, क्षत्रिय उनकी भुजाओं से, वैश्य उनकी जंघाओं से तथा शूद्र उनके पैरों उत्पन्न हुए थे तथा इन सभी के कार्य भी क्रमश शिक्षा देना, युद्ध करना, खेती करना तथा चौथे वर्ण का कार्य तीनों वर्णों की सेवा करना था. सही मायने में देखा जाए तो आर्यों ने ऋग्वेदिक काल में सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कार्यों का वैज्ञानिक आधार पर...आगे पढ़ें

Sunday, May 15, 2011

अपने और पराये (लघु कथा)

"ठीक है भैया समझो आपका ये काम हो गया." इतना कहकर अनिरुद्ध ने फोन रख दिया व कुर्सी पर आराम की स्थिति में बैठे-२ सोचने, अभी दिन ही कितने हुए भैया से मिले कोई दो साल बस किन्तु इन दो सालों में भैया से नाता सगे भाई से बढ़कर हो गया. कभी-२ भैया खुद ही हंसकर कहने लगते हैं, " हम दोनों का रिश्ता पिछले जन्म का है. हो न हो तुम पिछले जन्म में छोटे भाई होगे और बेशक इस जन्म में तुम मेरे सगे भाई नहीं हो लेकिन तुम मेरे लिए लक्ष्मण के जैसे हो." भाभी भी अक्सर बताती हैं, "ये तुम्हें अपने सगे भाई से भी अधिक चाहते हैं।" तभी चाय वाला चाय लेकर आता है. चाय की चुस्कियां लेते हुए आगे पढ़ें...

Thursday, May 5, 2011

किसी से कहना नहीं (लघु कथा)

माँ उदास हो आँगन में बैठी थी की तभी पड़ोस की आंटी आ धमकी. माँ को उदास बैठे देख उन्होंने पूछ लिया, "क्या बात हैं आज इतनी उदास क्यों हो".माँ ने बात टालते हुए कहा ,"कुछ ख़ास नहीं आज यूं ही थोडा मूड ठीक नहीं है ".आंटी जी माँ के पास बैठी और बोली ,"तुम कभी भी यूं ही उदास नहीं होती कुछ न कुछ बात तो है. मुझे नही बताओगी.आगे पढ़ें...

Saturday, April 30, 2011

अमीर-गरीब (लघु कथा)

शिष्य को चुपचाप बैठे देख गुरु ने उससे पूछा

गुरु : पुत्र कहाँ खोये हुए हो ?
शिष्य : गुरुदेव सामने खड़े रेहड़ीवाले को देख मन में कुछ विचार उमड़ रहे हैं.
गुरु : कैसे विचार पुत्र ?
शिष्य : यही कि रेहड़ीवाला गरीब है और अपना गुजारा परांठे की रेहड़ी लगाकर चलाता है.

गुरु : तो इसमें खास बात क्या हुई पुत्र ?
शिष्य : गुरु देव रेहड़ीवाला गरीब है फिर भी आगे पढ़ें...