Sunday, May 15, 2011

अपने और पराये (लघु कथा)

"ठीक है भैया समझो आपका ये काम हो गया." इतना कहकर अनिरुद्ध ने फोन रख दिया व कुर्सी पर आराम की स्थिति में बैठे-२ सोचने, अभी दिन ही कितने हुए भैया से मिले कोई दो साल बस किन्तु इन दो सालों में भैया से नाता सगे भाई से बढ़कर हो गया. कभी-२ भैया खुद ही हंसकर कहने लगते हैं, " हम दोनों का रिश्ता पिछले जन्म का है. हो न हो तुम पिछले जन्म में छोटे भाई होगे और बेशक इस जन्म में तुम मेरे सगे भाई नहीं हो लेकिन तुम मेरे लिए लक्ष्मण के जैसे हो." भाभी भी अक्सर बताती हैं, "ये तुम्हें अपने सगे भाई से भी अधिक चाहते हैं।" तभी चाय वाला चाय लेकर आता है. चाय की चुस्कियां लेते हुए आगे पढ़ें...

Thursday, May 5, 2011

किसी से कहना नहीं (लघु कथा)

माँ उदास हो आँगन में बैठी थी की तभी पड़ोस की आंटी आ धमकी. माँ को उदास बैठे देख उन्होंने पूछ लिया, "क्या बात हैं आज इतनी उदास क्यों हो".माँ ने बात टालते हुए कहा ,"कुछ ख़ास नहीं आज यूं ही थोडा मूड ठीक नहीं है ".आंटी जी माँ के पास बैठी और बोली ,"तुम कभी भी यूं ही उदास नहीं होती कुछ न कुछ बात तो है. मुझे नही बताओगी.आगे पढ़ें...